माह: अप्रैल 2018

कहीं भी

अपनी शादी की तस्वीरें देखते हुए, मैं एक पर रुक गई जिसमें हम नए "मिस्टर एंड मिसेज" बने थेI मेरा समर्पण भाव स्पष्ट दिख रहा था, मैं उनके साथ कहीं भी जाने को तैयार थीI

40 वर्षों बाद भी हमारी शादी प्रेम और प्रतिबद्धता की डोर से बंधी है, जिसने हमें कठिन और अच्छे समय से निकाला है। उनके साथ कहीं भी चलने के वचन को हर साल मैंने पुनःसमर्पित किया है।

यिर्मयाह 2:2 में परमेश्वर अपने प्रिय परंतु हठी इस्राइल से कहते हैं, "तेरी जवानी का..."। स्नेह भक्ति का इब्रानी शब्द सर्वोच्च कोटि की विश्वासयोग्यता और वचनबद्धता को व्यक्त करता है। पहले इस्राइल परमेश्वर के प्रति दृढ़ संकल्प से समर्पित रहने के लिए वचनबध्द था परंतु धीरे-धीरे वह दूर हो गया।

समर्पण में आत्मसंतुष्टता प्रेम को फ़ीका कर सकती है तथा उत्साह की कमी विश्वासघात पैदा कर सकती है। शादी में ऐसी लापरवाही से संघर्ष करने के महत्व को तो हम जानते हैं। परंतु परमेश्वर के साथ हमारे प्रेम-संबंध के बारे में क्या?  क्या उनके प्रति हम आज वैसे समर्पित हैं जैसे पहली बार विश्वास में आने पर थे?

परमेश्वर विश्वासयोग्यता से अपने लोगों को वापस आने की अनुमति देते हैं (3:14-15)।

हम नए सिरे से अपनी प्रतिज्ञा को दोहरा सकते हैं, कि हम उनके पीछे चलेंगे- कहीं भी।

माफ करने की कला

मैं एक कला प्रदर्शनी देखने गया-एक पिता और उसके दो पुत्र,  माफ करने की कला-जो यीशु के उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर आधारित थी। (लूका 15:11–31 देखें)। एडवर्ड रीओजस के चित्र उड़ाऊ पुत्र ने मुझे प्रभावित किया I जिसमें एक पुत्र था जो कभी हठी था, पर अब फटे कपड़े पहने और सिर झुकाए घर लौट रहा था। मृत्यु के देश को पीछे छोड़ वह उस रास्ते पर कदम रखता है जिसमें उसका पिता पहले ही उसकी ओर दौड़ रहा है। चित्र के नीचे यीशु के शब्द हैं, “वह अभी दूर ही...” (पद 20)।

परमेश्वर के अपरिवर्तनीय प्रेम ने किस प्रकार मेरा जीवन बदल दिया था इस बात ने पुनः मुझे छू लिया। उनसे दूर जाने पर वह मुंह मोड़ने की बजाय मेरी राह देखते हुए प्रतीक्षा करते रहे। उनका प्रेम पाने की हम में योग्यता नहीं है, तो भी वह अपरिवर्तनीय है; प्रायः उपेक्षित होता है, तो भी निर्लिप्त नहीं होता।

हम सभी दोषी हैं,  तो भी हमारे स्वर्गीय पिता हमें गले लगाने के लिए वैसे दौड़े आते हैं, जैसे इस कहानी में पिता ने अपने हठी पुत्र को गले लगाया। पिता ने अपने सेवकों से कहा; “हम भोज करें...(पद 23-24)।

परमेश्वर उन लोगों के लिए आनंदित होते हैं जो आज उनके पास लौटते हैं-और यह आनंद मनाने योग्य बात है!

उतावले ना बनो

"उतावलेपन को कठोरता पूर्वक निकाल डालो" दो दोस्तों द्वारा बुद्धिमान डालेस विलर्ड के इस कथन के दोहराए जाने पर मैं समझ गया कि मुझे इसके बारे में सोचना चाहिए। मैं अपना समय और ऊर्जा कहाँ बर्बाद कर रहा था? मार्गदर्शन और सहायता के लिए परमेश्वर की ओर देखने की बजाय मैं उतावला होकर बेसुध चल रहा था। आगे चलकर मैंने परमेश्वर और उनकी बुद्धिमत्ता की ओर रुख कियाI अपने तरीकों पर चलने के बजाय परमेश्वर पर विश्वास करने की बात को ध्यान में रखाI

बेतहाशा दौड़ना उसका विपरीत होता है जिसे भविष्यवक्ता यशायाह "पूर्ण शांति" कहते हैं। यह वरदान परमेश्वर उन्हे देते हैं जिनके मन उसमे स्थिर हैं क्योंकि वह उनपर भरोसा करते हैं। और वह सदा विश्वासयोग्य हैं आज, कल, और हमेशा, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान हैं (पद 4)। धीरज धर कर परमेश्वर पर विश्वास करना उतावलेपन के जीवन का इलाज है।

हमारे बारे में क्या?  क्या हम जानते हैं कि हम उतावलापन या जल्दबाजी कर रहे हैं?  शायद हमें शांति भी अनुभव होती हो। या शायद हम इन दोनों चरम सीमाओं के बीच में कहीं हों। हम जहां भी हों, मैं आज प्रार्थना करती हूं कि हम अपने उतावलेपन को छोड़कर परमेश्वर पर भरोसा करें जो हमें कभी निराश नही करते और हमें अपनी शांति देते हैंI

जन्म के अनुसार किसी का आंकलन करना

"आप कहां से हैं"?  दूसरों को बेहतर जानने के लिए हम यह प्रश्न पूछ लेते हैं। परन्तु हम से अधिकांश सब कुछ नहीं बताना चाहते। न्यायियों की पुस्तक में यिप्तह शायद इस प्रश्न का उत्तर कदापि नहीं देना चाहता थाI उसके सौतेले भाइयों ने उसे यह कह कर गिलाद के घराने से निकाल दिया था कि, "तू तो पराई स्त्री का बेटा है" (न्यायियों 11:2)। पाठ बताता है कि," उसकी माता एक वैश्या थी" (पद 1)।

परंतु यिप्तह एक स्वभाविक अगुवा था। विरोधी जाति के गिलाद पर आक्रमण करने के कारण उसे बाहर निकालने वाले लोग अब उसे लौटने को कहने लगे। "हमारा प्रधान हो जा", उन्होंने कहा (पद 6)। यिप्तह ने पूछा, "क्या तुमने मुझ से..."( पद 7)?  यह आश्वासन मिलने के बाद कि अब चीजें फ़र्क होंगी, वह उनकी अगुवाई करने के लिए सहमत हो गया। “तब यहोवा का आत्मा...” (पद 29)। विश्वास के द्वारा उसने उनकी अगुवाई कर एक महान विजय दिलायी। नया नियम उसे विश्वास के नायकों में सूचीबद्ध करता है (इब्रानियों 11:32)।

अक्सर परमेश्वर अपने कार्यों को करने के लिए विचार से परे लोगों को चुनते हैं,  है ना?  हम कहां से हैं, यहां कैसे आए, हमने क्या किया है, इससे फर्क नहीं पड़ता। मुख्य यह है,  कि हम उनके प्रेम का प्रतिउत्तर विश्वास से दें।

परमेश्वर को जानना सीखना

मैं हमेशा से मां बनना चाहती थ और विवाह करने, गर्भवती होने, और बच्चे होने के सपने देखती थे। परंतु विवाह के बाद गर्भावस्था के नकारात्मक परीक्षणों के बाद मेरे पति और मुझे एहसास हुआ कि हम बांझपन से संघर्ष कर रहे थे। महीनों तक डॉक्टर के चक्कर, परीक्षण और आसूँ बहाना चलते रहे। हम तूफान के बीच में थे। बांझपन के कारण मैं परमेश्वर की भलाई और उनकी विश्वासयोग्यता पर संदेह करने लगी।

अपनी यात्रा से मुझे यूहन्ना 6 में समुद्री तूफान में फसें चेलों की कहानी याद आती है। जब वे अंधेरे में तूफान की लहरों से जूझते हुए नाव में थे तब उन्होंने यीशु को झील पर चलकर उनकी ओर आते देखा। उन्होंने अपनी उपस्थिति से चेलों को शांत किया और कहा, "मैं हूं; डरो मत"(पद 20)।

चेलों के समान हम दोनों नहीं जानते थे कि हमारा तूफान क्या लाएगा; परंतु हमें शांति मिली, क्योंकि हम परमेश्वर को अधिक गहराई से जानने लगे, कि वो सदा विश्वासयोग्य और सच्चे हैं। यद्यपि जिस बच्चे के हमने सपने देखे थे वह हमें नहीं मिलेगा,  परन्तु हमने सीखा कि हमारे संघर्षों में हम परमेश्वर की शांतिदायक उपस्थिति अनुभव कर सकते हैं। क्योंकि वह हमारे जीवनों में सामर्थपूर्ण रूप से कार्य कर रहे हैं, इसलिए हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।

बस एक पल

वैज्ञानिक समय को लेकर काफी नुक्ताचीनी करते हैं। 2016 के अंत में,  मैरीलैंड के स्पेस फ्लाइट सेंटर पर लोगों ने साल में एक अतिरिक्त सेकंड जोड़ दिया। यदि आपको वह साल सामान्य से अधिक लम्बा लगा हो, तो आप सही थे।

उन्होंने ऐसा क्यों किया?  क्योंकि समय के साथ धरती की परिक्रमा की गति धीमी और साल थोड़े लम्बे होते जाते हैं। अंतरिक्ष में मनुष्य द्वारा भेजी वस्तुओं को ट्रैक करते हुए वैज्ञानिकों को एक-एक मिली सेकंड तक सटीक होना पड़ता है। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि टकराने से बचाने वाले हमारे कार्यक्रम सही कार्य कर रहे हैं।

हम में से अधिकांश के लिए एक पल पा लेने से या उसे गवा देने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन वचन के अनुसार, हमारा समय, और इसका उपयोग हम कैसे करते हैं यह महत्वपूर्ण है। पौलुस ने 1कुरिन्थियों 7:29 में कहा कि "समय कम है"। परमेश्वर के लिए किए जाने वाले कार्यों के लिए समय सीमित है, इसलिए हमें बुद्धिमानी से इसका उपयोग करना चाहिए। वह कहता है, "और अवसर को..."। (इफिसियों 5:16 इएसवी)

इसका अर्थ यह नहीं कि हमें वैज्ञानिकों के समान प्रत्येक सेकंड गिनना चाहिए, परंतु जब हम जीवन की अनित्य प्रकृति (भजन 39:4) पर विचार करें तो समय के बुद्धिपूर्वक उपयोग की बात याद रखें।

गीत गाने का कारण

13 वर्ष के होने पर हमारे स्कूल के नियमों के अनुसार छात्रों को चार शोधपूर्ण कोर्स लेने अनिवार्य थे जिसमें गृह-अर्थशास्त्र, कला, गायक-वृंद तथा बढ़ईगिरी शामिल थे। गायन की पहली कक्षा में प्रशिक्षक ने छात्रों की आवाज सुनने के लिए एक-एक करके पियानो के पास बुलाया और उनकी स्वर क्षमता के अनुसार कमरे में पंक्तिबद्द किया। अपनी बारी पर मैंने पियानो के साथ गाने की कोशिश की, कई प्रयासों के बाद मुझे किसी पंक्ति की बजाए कोई दूसरी कक्षा लेने के लिए काउंसलिंग ऑफिस भेज दिया गया। मुझे लगा कि मुझे नहीं गाना चाहिए।

मैंने 10 वर्ष तक यह बात मन में रखी जबतक कि मैंने भजन-संहिता 98 ना पढ़ा। लेखक "प्रभु के लिए गाने" (भजन 98:1) के निमंत्रण से इसे आरम्भ करता है। इसका हमारे गाने की क्षमता से कोई सारोकार नहीं। वह अपने सभी बच्चों के धन्यवाद और स्तुति के गीतों से प्रसन्न होते हैं। वह हमें इसलिए गाने को कहता है क्योंकि परमेश्वर ने "अद्भुतकाम किए हैं "(पद 1)। 

भजनकार ने अपने गीतों और व्यवहार में आनन्दित होकर परमेश्वर की स्तुति करने के दो कारण दिए: हमारे जीवन में उनके उद्धार का कार्य और उनकी निरंतर रहने वाली विश्वासयोग्यता। परमेश्वर की गायन मंडली में हम में से प्रत्येक के पास उनके अद्भुत कामों के लिए गीत होते हैं।

हमारे तूफानों में

हवा का शोर,  बिजली का कौंधना, लहरों का टक्करना। मुझे लगा मैं मरने वाला था। झील में दादा-दादी समेत मछली पकड़ते हुए काफ़ी देर हो चुकी थी। सूरज ढलते ही हमारी नाव के ऊपर से तेज़ हवा गुजरी। नाव ना पलटे इसलिए दादाजी ने मुझे सामने बैठा दिया। दिल डर से भर गया। मैंने प्रार्थना आरंभ कर दी। मैं तब 14 वर्ष का था।

मैंने परमेश्वर से उनके आश्वासन और सुरक्षा को मांगा। तूफान नहीं थमा, परंतु हम किनारे पहुंच गए। परमेश्वर की उपस्थिति की गहन निश्चितता का अनुभव अभूतपूर्व था।

यीशु तूफान से अनभिज्ञ नहीं हैं। मरकुस 4: 35-41 में उन्होंने चेलों को झील के पार जाने को कहा जो जल्द तूफानी और क्रूर होने वाली थी। तूफान ने इन मछुआरों की परीक्षा ली और उन्हें सर्वश्रेष्ठ बना दिया। उन्हें भी लगा कि वे मरने वाले हैं, परंतु यीशु ने तूफान शांत और चेलों के विश्वास को गहरा किया।

हमारे तूफानों में यीशु हमें उनपर भरोसा करने को आमंत्रित करते हैं। कभी-कभी वह अद्भुत रूप से हवाओं और लहरों को, तो कभी हमारे मन को शांत करते हैं। और उनपर भरोसा करने में हमारी सहायता करते हैं। वह हमें इस विश्वास में स्थिर रहने को कहते हैं कि उनके पास लहरों से कहने का सामर्थ है, "शांत हो जाओ"।

जब एक दुख पाता है, सब दुख पाते हैं

मेरे सहकर्मी ने दर्द के कारण अवकाश लेने पर कार्यालय में सब चिंतित थे। उपचार के बाद उसने वापस आकर हमें दर्द की जड़ दिखाई- वह पथरी थी। मुझे वर्षों पूर्व अपने गॉल्ब्लैडर की पथरी याद आ गई जिसका दर्द बेहद कष्टदायी था।

इतनी छोटी चीज़ देह को इतनी पीड़ा दे सकती है? पौलुस ने 1कुरिन्थियों 12:26 में कहा, “इसलिये यदि एक अंग...”। पौलुस ने दुनिया भर के मसीहियों के लिए ‘देह’ का प्रयोग किया है।  "परमेश्वर ने देह को...",( पद 24)  यहाँ पौलुस मसीह की समस्त देह की बात कर रहे थे-सब मसीही। हम सभी के अलग वरदान और भूमिकाएं हैं। परंतु हम एक देह के अंग हैं इसलिए जब एक दुखी होता है तो सब दुखी होते हैं। जब एक सताव, दुख या परीक्षाओं में पड़ता है, तो हमें भी यूं कष्ट होता है मानो चोट हमें लगी है, दर्द मानो हम अनुभव कर रहे हैं।

मेरे सहकर्मी को वह मदद लेनी पड़ी जिसकी उसे आवश्यकता थी। मसीह की देह में दूसरे का दर्द हममें करुणा जगाता है और कुछ करने के लिए बाध्य करता है। हम प्रार्थना कर सकते हैं, प्रोत्साहन के शब्द कह सकते हैं या उपचार प्रक्रिया में मदद करने के लिए जो संभव हो वह कर सकते हैं। देह इसी प्रकार मिल कर काम करती है।